अलसुबह जो चाह थी,
शाम तक वो खो गई..
दर्द के कतरे समेटे,
भूख चुप हो सो गई..
कर्ज़ आहें भर रहे थे,
और फर्ज़ सारे डस रहे थे..
फिर शब्द सारे मौन थे,
और अर्थ सारे गौण थे..
रात की चादर लपेटे,
नक्श तारों के नहीं थे..
धुंध के आंचल घनेरे,
लक्ष्य राहों के नहीं थे..
इस हार को जो जीत पाए,
वो नया सूरज उगाए..
फिर आस के जो गीत गाए,
स्वप्न अपने वो जगाए..
अक्षिणी
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