काँटों और उजाड़ों में
बीहड़ों और पहाड़ों में
वो मान धरा का रखने वाला
था मेवाड़ धरा का रखवाला
तपती गर्मी के अंगारों में
आँधी में और बरसातों में
रजपूती आन पे मरने वाला
हिन्द की शान पे मिटने वाला
तीरों और तलवारों से
भालों और कटारों से
खूब लड़ा वो ऊँचे सर वाला
महलों का राणा वो मतवाला
घोर अंधेरों में भटका जो
सिसोदिया सूरज था वो
वो घास की रोटी खाने वाला
एकलिंग को शीश नवाने वाला
आन की खातिर प्राण प्रतापी
शीश दिए शोणित अभिमानी
मुगलों की ताकत तोलने वाला
मेवाड़ का राणा वो महाराणा..
अक्षिणी
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