रात की मृत्यु से सीखें, जागती किरणों को सींचें.
बन सजल सूरज के घोड़े, भोर की डोली को खींचें.
अलसाई आँखों को खोलें, रोशनी सपनों में भर लें.
तारों की चादर समेटें, धूप की चुनर को ओढ़ें.
ओस की बूंदों को चूमें, और धरा की माँग भर दें..
अक्षिणी भटनागर
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