मंगलवार, 2 मई 2017

मगर..

ज़िंदा तो है मेरा आप मगर जीता नहीं है,
होता तो है सरेअक्स मगर मिलता नहीं है..

बुनता तो है कुछ ख़्वाब,मगर चुनता नहीं है,
सहता तो है हर बात मगर कहता नहीं है..

उलझा तो है ये वक्त मगर ठहरा नहीं है,
महका तो है कुछ देर मगर बहका नहीं है..

चलता तो है मेरे साथ मगर दिखता नहीं है,
सुलगा तो है हर बार मगर जलता नहीं है..

सहमा सा है एतबार मगर बिखरा नहीं है,
करता तो है इकरार मगर रुकता नहीं है..

अक्षिणी भटनागर

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