चाहा तो बहुत कि फिर प्यार करें,
ख़ता-ए-इश्क फिर एक बार करें..
निगाहों से कह दें, कुछ बात करें,
इज़हार करें कुछ,फिर इकरार करें..
ज़ख़्म भरने को हैं बरसों पुराने ,
चलो इक बार फिर एतबार करें..
कह लें अपनी थोड़ी सच्ची-झूठी,
या कि थोड़ा अभी इंतजार करें..
झूठ कहने की आदत नहीं मुझको,
बेहतर है कि फिर ना एतबार करें..
फिर ये सोचें कि क्युं ये बेकार करें,
ख़ुद को दिन रात यूं ही बेकरार करे..
क्यों परेशां हों हम,ख़ुद को परेशान करे
जब ये तय है कि लोग कारोबार करें,
अक्षिणी भटनागर
*on a lighter note..
खामख़्वाह क्यूं दिल बेकरार करें,
फिज़ूल इस दिल को बेजार करें.
जब कि तै है कि सब बाज़ार करें,
काहे मुफ़्त का हम व्यापार करें..
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें