बुधवार, 31 मार्च 2021

निरीह..!

इस संसार में भांति-भांति के जीव पाए जाते हैं..
सभी का अपना-अपना स्वभाव, निभाव और दुर्भाव होता है..
सृष्टि के आविर्भाव के साथ ही एक निरीह प्रजाति का प्रादुर्भाव हुआ..
उसके जन्म के समय आकाशवाणी हुई कि यह प्राणी समस्त जड़-चेतन के परे होगा..
कि ताप-दाब-आँधी-तुफान जैसी आधियाँ-व्याधियाँ इसे कभी छू नहीं सकती। यह प्राणी बड़े ही संतोषी स्वभाव का होगा। जो इसके पास होगा वह तो बाँटेंगा ही किंतु जो नहीं होगा वह भी यह किसी तरह जुगाड़ बैठा कर बाँटेंगा।
कि इसे सर्दी-जुकाम तो क्या कलियुग की कोरोना महामारी भी छू नहीं पाएगी।
बारहों महीने आठों पहर यह तुच्छ जीव कर्तव्य पालन में जुटा रहेगा।
इस पर चारों ओर से वज्र प्रहार होने पर भी यह डटा रहेगा।
संसार के समस्त मनोविकारों से परे यह जीव देवतुल्य होगा इसलिए जब चाहे इसका पेट काटा जा सकेगा।
कि इसे किसी भी प्रकार के विराम अथवा विश्राम की आवश्यकता नहीं होगी। कोल्हू के बैल की भांति ये तब तक जुटा रहेगा जब तक इसका स्वयं का पूरा तेल न निकल जाए।
कालांतर में यदि अवसर मिला तो यह अपना तेल निकलने के उपरांत बची खली भी जनता-जनार्दन में बाँट देगा।
कि यह प्राणी सर्वज्ञानी होगा..इसे कोई कौशल प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं  है। इसका सकुशल होना ही इसका वास्तविक कौशल होगा।
आपत्ति-विपत्ति के कठिन समय में यह कलियुगी चीन की दीवार की तरह सब तरफ ढाल बना कर फेंक दिया जाएगा।
कि इसका भोलापन ही इसका एकमात्र अस्त्र होगा जिसे यह निर्विकार भाव से दूसरों की भलाई के लिए ओढ़े रहेगा।
श्वास तो होगी किंतु श्वास भरने का समय नहीं होगा।
हाथ तो दो ही होंगे किंतु उन्हें दस समझा जाएगा।
कि यह प्राणी इतना विनयी होगा कि सदैव शीश नवाए रहेगा..इसके कंधे और सदैव झुके रहेंगे।
कि विभिन्न युगों में भिन्न-भिन्न प्रकार से इसका दोहन किया जाता रहेगा।
कि गाँव-देहात-नगर-डगर-देस-परदेस सभी जगह पाया जाएगा।
कि इसका जीवन प्रसवावस्था की भांति दस मास का होगा जो बारहमासी हो जाएगा।
कि ऐसे विलक्षण प्राणी को प्रत्येक युग में 
शिक्षक कहा जाएगा..!

अब दोबारा पढ़िए..

🙏🤓

अक्षिणी..

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