रविवार, 21 मार्च 2021

ओस सी धुली-धुली..

ओस सी धुली-धुली,दूध सी घुली-घुली सी है

बर्फ सी सिली-मिली,फूल सी खिली-खिली सी है


मेरे संग रोती-हँसती,मुझ सी वो बतियाती है

आँसू के अमृत बरसाती, यादों में जीती जाती है


गुँजन-गुँजन गाती जाती,शिंजन-शिंजन खनकाती है

पल-पल तोला,रत्ती माशा,छन-छन रूठी-मनती आशा..


निर्मल निश्छल निर्झर सी,भोली-भाली भली सी है

मेरी कविता सीधी-सच्ची मेरे मन की एक नदी सी है..

~अक्षिणी 

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