शुक्रवार, 26 मार्च 2021

परकोटे के द्वार..

पुराने समय के नगर नियोजन में सुरक्षा की दृष्टि से नगर के चारों ओर अभेद्य दीवार बनाई जाती थी जिसे नगरकोट कहा जाता था। कालांतर में जब नगर शहर हुआ तो इसे शहर कोट कह कर बुलाया जाने लगा।
जंगली जानवरों और शत्रुओं से बचाव के  लिए केवल पत्थरों और गारे से बनी इन दीवारों में जगह-जगह निगरानी चौकियां बना कर उन पर कड़ा पहरा रखा जाता था।
पहाड़ों पर बने दुर्गों पर तो इनका महत्व और भी बढ़ जाता था।
यदि हम अपने पुरखों के बनाए भव्य
निर्माण का अवलोकन करें तो प्राचीन स्थापत्यकला के समक्ष नतमस्तक हो जाते हैं।बिना आधुनिक यंत्रों, निर्माण सामग्री आदि की अनुपस्थिति में इतना भव्य निर्माण किसी चमत्कार से कम नहीं है।
तकनीक के क्षेत्र में बड़े ही समृद्ध रहे होंगे हमारे पूर्वज जो स्थानीय सामग्री से सुंदर और सुसज्जित निर्माण करने में सक्षम हुए।
भव्यता के साथ मजबूती और दर्शनीयता का भरपूर ध्यान रखा जाता था।कितने ही जर्जर क्यों न हों उस समय के भवन अद्वितीय संतुलन एवं अनुपम सौंदर्य लिए होते थे।
यदि उस समय की निर्माण तकनीक का विश्लेषण किया जाए तो हम पाएंगे कि सभी निर्माण प्रकृति को ध्यान में रखते हुए किए जाते थे। पंचतत्वों का अधिकतम उपयोग उन्हें हानि पहुँचाए बिना..ऐसा उदाहरण कतिपय ही मिलेगा।
लंबे-चौड़े खुले बरामदे और कक्ष जो न सर्दियों में गले न ही गर्मियों में तपे..!
सहस्त्रों वर्षों से शीश उठाए खड़े ये भवन हमारे समृद्ध इतिहास की साक्षी हैं..
अद्भुत..!
नयनाभिराम किंतु हम बात नगरकोट की यानि परकोटे की कर रहे थे।परकोटे में प्रवेश और निकास के लिए विभिन्न दिशाओं में विशाल द्वार बनाए जाते थे जिन से रथ, हाथी, ऊँट आदि सरलता से आ जा सकें..प्रत्येक द्वार पर कड़ी जाँच के बाद शुल्क ले कर ही आगंतुकों को प्रवेश दिया जाता था।
इन द्वारों के नाम लगभग सभी जगह एक से हुआ करते थे..इसीलिए हर शहर में हमें एक सूर्यद्वार (सूरजपोल,पूर्व की ओर खुलता हुआ), चंद्रद्वार (चाँदपोल, पश्चिम की ओर खुलता हुआ, ब्रह्मपोल, हाथीपोल, किशनपोल आदि सुनने को मिल जाते हैं।
नगर रक्षकों द्वारा बिना बिजली के दिन-रात नगर की निगरानी अत्यंत दुष्कर रही होगी..ऐसे में असीम निष्ठा,दृढसंकल्प और आस्था का आश्रय अवश्यंभावी रहा होगा इसीलिए परकोटे के साथ-साथ छोटे-बड़े अनेक मंदिर बने होते थे जिनकी सेवा-पूजन का उत्तरदायित्व राजे-महाराजों का रहा होगा।
समय बदला..राजाओं का राज गया..पहले मुगलों ने लूटा-खसौटा, फिर अँग्रेज़ों ने और अब जनता का राज है..जर्जर नगरकोट बताते हैं कि आज का राजा यानि जनता कितनी संवेदनहीन है इनके प्रति।
दिन-प्रतिदिन धूलि-धुसरित होते इन नगरकोटों में लगती सेंध जनता की निस्पृहता की मौन किंतु मुखर साक्षी है..

~अक्षिणी..
 

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