शनिवार, 30 नवंबर 2019

ऐसा जनता का राज रहे..

राजा का ताज रहे।
रानी की लाज रहे।
मंत्री को काज रहे।
सिपाही लाठीबाज रहे।
ऐसा जनता का राज रहे।

छोटे खयाल करे
खोटे सवाल करे
बेटी हलाल करे
रोटी बवाल करे
ऐसा जनता का राज रहे..

सौदे दलाल करे
मौतें जलाल करे
गोते गुलाल करे
धोती रुमाल करे
ऐसा जनता का राज रहे..

अक्षिणी 

खबर है कहाँ ..

खबर भी कहाँ  है..
महज एक ट्वीट है..
वाट्स अप  पर 
फकत एक पोस्ट
स्क्राॅल करती 
हमारी अंगुलियां
देखती हैं ..
एक पल ठिठकती हैं 
और आगे बढ़ जाती है
गाँधी और गोडसे की ओर..

अक्षिणी 

शुक्रवार, 29 नवंबर 2019

बेटी को..

बात बेटी को बचाने की है तो 
बेटे को पढ़ाना जरूरी है..
अगर बेटी को पढ़ाने की है तो
बेटे को समझाना जरूरी है..

अक्षिणी 

राज तो..

अरे भाई.. 
राज तो राजा राम जी का भी नहीं रहा..
फिर फडनवीस तो साधारण मनुष्य ही है..
उसके पितामह न ठाकरे न नेहरू
न रसूख वाले पँवार..
न उसका खानदान गाँधी, 
न प्रधानमंत्रियों वाला..
राज करना कहाँ  से आता..
कौन सिखाता उसे 
सरकारी रेवड़ियां बाँटना..
जितना चला उतना बहुत..

अक्षिणी 

तुझ तक..

घिरा बैठा हूँ अपने ही दायरों में,
मुद्दत से खुद को सँभाले हुए..
मैं  बिखर न जाऊं कहीं,
तुझ तक पहुँचने की कोशिश में ..

अक्षिणी 

वो लुटती,जलती,मरती रहेगी..

तुम गाँधी गोडसे करते रहना,
वो लुटती,जलती,मरती रहेगी..

तुम वकील कचहरी खेलते रहना,
वो लुटती,जलती,मरती रहेगी..

तुम सिलाई मशीन बाँटते रहना,
वो लुटती,मरती,जलती रहेगी..

तुम धर्म-अधर्म के गीत गाना
वो खटती कटती मरती रहेगी..


अक्षिणी 

आधुनिक भांड

निर्णायक ..?
ये लोग खुद को 
ठेकेदार समझने लगे हैं..
जानते नहीं कि
म्यूट दबा देती है जनता
एक सीमा के बाद..
आता कहाँ है इन्हें 
खबरों को पढ़ना..
ये जानते हैं बस
खबरों को गढ़ना..
प्रवक्ता नहीं ये 
इस काल के भांड हैं ..




अक्षिणी 

ठाकरे..

एक रहिन ठाकरे..
बाला साहिब ठाकरे..
शेर माणुस..खालिस..
जय मराठा..

एक हईं ठाकरे..
अद्भव ठाकरे ..
खींसा निपोर..चापलूस..
गए मराठा..

एक अऊर हुईं ठाकरे..
आदि ठाकरे..
बाळक बुद्दि.. पप्पु माणुस..
गए मराठा..


अक्षिणी 

शिव सेना..

लो आज सुण्यो है नाहरियो स्याला रे संग सोयो है..
शिव सेना रो सूरजड़ो बादल री ओटां खोयो है..
राज रे खातर माँ बदली है..
ताज रे खातर बाप बिक्यो है..

लो आज सुणी है सेना रो बनवास टुट्यो है,
आ बात सही है शिव सेना रो हाथ खुल्यो है..
कुर्सी रे खातर माँ बदली है..
कुर्सी रे खातर बाप बिक्यो है..

लो आज सुण्यो है जनता रो विश्वास टुट्यो है,
हाँ साँच सुण्यो है पुरखाँ रो आसीरवाद छुट्यो है..
सत्ता रे खातर माँ बदली है ..
सत्ता रे खातर बाप बिक्यो है..

लो आज सुण्यो है मराठा हिंदवाणी सूरज डूब्यो है,
साफ सगत फेर म्हारा भारत रो भाग डुब्यो है..
स्वारथ रे खातर आस बिकी है,
लालच रे खातर मान बिक्यो है..

अक्षिणी 

लानतें..

नपुंसकों का कानून बस भेजता है कुछ लानतें..
कहता है कि अपराधियों की बढ़ गई हैं हिम्मतें..

काजी साब तो है बस इंसाफ नहीं मिल रहे
या कि सय्याद तो हैं जल्लाद नहीं मिल रहे..

अक्षिणी 

बहत्तर साल..

बीत गए हैं बहत्तर साल..
फिर भी 
नहीं बिछा पाए हम कानून का जाल
नहीं बना पाए कोई शिकंजा
जो फोड़ सके इन भेड़ियों का भाल
आखिर कब तक
सहते रहेंगे
इन जानवरों के व्यभिचार?
है कोई जवाब?
उठो..
मोमबत्तियों से कुछ नहीं होगा
उठानी होगी अब मशाल
और फूँकने होंगे
ये नरपिशाच..

अक्षिणी 

मंगलवार, 19 नवंबर 2019

पुरुष दिन..

पुरुष दिन कुछ यूँ मनाया,
बीवी से मौन व्रत है रखवाया.

सुबह से चुप हों बैठी हैं.
मानों जीभ इनकी ऐंठी है.
कल की कल देखेंगे 
आज तो अपना दिन आया.

पुरुष दिन कुछ यूँ मनाया,
वाट्स अप पर ब्लाॅक दबाया.
पूरे दिन फोन नहीं  उठाया,
बेगम का हुकुम नहीं बजाया.

पुरुष दिन कुछ यूँ मनाया..
बिना शेव के दफ्तर आया
गीला तौलिया छोड़ के आया
बिस्तर को सीधा नहीं लगाया

पुरुष दिन कुछ यूँ मनाया 
दो घंटे घर देर से आया
मस्त बहुत ये दिन बिताया
आज मैंने खाना नहीं बनाया

पुरुष दिन कुछ यूँ मनाया
झाडू पोंछा नहीं लगाया
टाॅमी को भी नहीं घुमाया
मैडम का सर नहीं दबाया

पुरुष दिन..

अक्षिणी

सोमवार, 11 नवंबर 2019

चिता के फूल..

      रोज मरते हैं  
      खाक होते हैं  
      फिर उठते हैं 
      अपनी ही 
      चिता के फूल
      चुनने के लिए 
      और जी उठते हैं  
      एक बार फिर
      फिर एक बार 
      मरने के लिए..

        अक्षिणी

शनिवार, 2 नवंबर 2019

सँवारती हूँ उन्हें..

रोज सुबह पुकारती हूँ,
सँवारती हूँ उन्हें..
जगाती हूँ , 
आँगन में ले आती हूँ 
सजाती हूँ,
थोड़ी धूप दिखाती हूँ..
दुलराती हूँ,
चाहों के झूले में  झुलाती हूँ..
सींचती हूँ,
हवा का रुख दिखाती हूँ..
भींचती हूँ, 
और सहेज कर रख देती हूँ..
अधूरे सही,
सपने तो मेरे अपने हैं ..
जीवित रखती हूँ उन्हें,
सँवारती हूँ उन्हें ..




अक्षिणी 



एक या दो बस..

यदि मनुष्य हो तो बच्चे एक या दो बस,
जो जानवर हो तो लाईन लगाओ दस..

हो मनुष्य तो संतान एक या दो बस,
हो जानवर गर तो खड़ा करो सर्कस..


अक्षिणी 

हम सा..

मुश्किल है हम सा कोई होना,
एक कोशिश आप भी कर देखिए ..


अक्षिणी 

शुक्रवार, 1 नवंबर 2019

क्यूं करनी हैं ..

क्यूँ करनी हैं 
शहतूतों के दौर की बातें
पेड़ों पर उन
फूलों के बोर की बातें
जीवन के 
भूले बिछड़े छोर की बातें
रिश्तों में 
अटके मन के मोह की बातें
शर्तों में 
भटके नेहों के छोह की बातें
क्यूं करनी है
शहतूतों के दौर की बातें
दरियाओं पर
मस्तूलों के जोर की बातें
क्यूँ करनी है..

अक्षिणी 

जिया है..

शब्द संयोजन में क्या रखा है,
वो लिखा है जो जिया है..



अक्षिणी 

खबर नहीं है..

कुछ भी नहीं बचा है सब ख़ाक हो चला है,
हर सूं बिखर गए हैं उनको ख़बर नहीं है..

अक्षिणी 

हम तुम..

हैं साथ मगर दूर हम तुम,
अपने अपने दायरों में गुम..

हैं साथ मगर हैं  दूर दूर,
गो ख़ुदी के नशे में चूर चूर..

अक्षिणी 

बज़ाहिर..

बज़ाहिर प्यार का दुनिया में जो अंजाम होता है,
कोई मजनूँ,कोई हाकिम,कोई गुलफाम होता है..

अक्षिणी 

तेरी याद चली आई..

फिर वही मुश्किल है सरे शाम,
तेरी याद चली आई..

हुई कातिल है ये महफिल तमाम,
तेरी याद चली आई..

तुम न समझोगे मेरे अहसास,
तेरी याद चली आई..

कैसे उतरेगा ये वहशी तुफान,
तेरी याद चली आई..

फिर से जागे हैं वही अरमान
तेरी याद चली आई..

कैसे भूलेंगे ये तेरा अहसान,
तेरी याद चली आई..

कितनी महँगी थी वो पहचान,
तेरी याद चली आई..

बिखरे बिखरे हैं मेरे जज्बात,
तेरी याद चली आई..



अक्षिणी