चाह नई हो राह नई हो,
जीने का उल्लास नया .
चेहरों पे मुस्कान नयी हो,
फूलों पे मधुमास नया .
मिट्टी रूखी न रहे,
और पत्ते सूखे न रहें.
नहरें खाली ना रहें,
और बच्चे भूखे ना रहें.
पानी आँखों में नहीं हो,
बाली दानों से भरी हो.
हो नहीं नफरत कहीं पे,
प्यार से बस्ती सजी हो.
है अगर जो साल नया तो...
साज नया हो राग नया हो,
सुबह का हर ख्वाब नया .
खुशियों का आगाज़ नया हो,
और जीने का अंदाज नया..
चाह नई हो राह नई हो,
जीने का उल्लास नया...
अक्षिणी भटनागर
(साहित्य धारा, आकाशवाणी जयपुर )
सोमवार ,
2 जनवरी 2017..
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