गुरुवार, 9 मार्च 2017

सब कुछ संभव है..

हाँ मैंने यह बचपन से जाना है,
मूर्खों से मुझको ना बतियाना है.
हाँ प्रश्न तुम्हारा बचकाना है पर,
अब उत्तर मुझको समझाना है.
इस भारतभू पर हे मूढ़मतै,सब कुछ संभव है..

जहाँ अध्धों-पव्वों मे चुन जाते नेता,
और बन जाती हो सरकारें.
जहाँ रक्षा सौदों में हो जाते हों समझौते,
और बिक जाती हों तलवारें.
उस भारतभू पर हे मूढ़मतै,सब कुछ संभव है..

जहाँ दिग्विजय ही दिशाहीन हो,
सठियाने में ब्याह रचाते हों .
जहाँ नब्बे की उमर में बौराए हो,
नेता मंत्री बाप बन जाते हों .
उस भारतभू पर हे मूढ़मतै,सब कुछ संभव है..

जहाँ तुम जैसे डकार जाते हो,
कन्हैया की अभिलाषाओं की सैंवय्याँ,
और बेशर्मों से चटखार जाते हो,
मेहर की महत्वाकांक्षाओं के घेवर.
उस भारतभू पर हे मूढ़मतै,सबकुछ संभव है..

जहाँ बूढ़े बच्चों को बहलाने में तुम,
हो जाते हो नतमस्तक.
जहाँ राजमाता और राजपुत्र,
विदेश में मनाते हों उत्सव.
उस भारतभू पर हे मूढ़मतै, सब कुछ संभव है..

जहाँ चुनाव आयोग महीनों तक,
देश को रख लेता हो बंधक.
जहाँ चारे,तोप मशीनों तक,
बाड़ों को भी खा जाते हों रक्षक.
उस भारतभू पर हे मूढ़मतै, सबकुछ संभव है..

इस मातृभूमि के यश गौरव के,
तुम भी तो सौदाई हो.
मातृभूमि के उत्थानपतन के,
तुम भी तो उत्तरदायी हो.
उस भारतभू पर हे मूढ़मतै, सबकुछ संभव है..

अक्षिणी भटनागर

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