शुक्रवार, 24 मार्च 2017

अनर्गल..

आज का मीडिया..
लोकतंत्र का तथाकथित चौथा स्तम्भ.
ना पठन ना चिंतन, ना कोई मनन,
बस धाराप्रवाह विष वमन.
ना शोध ना अध्ययन, ना विवेचन,
बस चढ़ते सूरज का यश गायन.
ना भाषा ना सृजन, निरा विज्ञापन,
बस नाम बड़े और छोटे दर्शन.
ना संचार ना विचार बस प्रचार,
झटपट लोकप्रियता का आरोहण.
न प्रयास न सायास बस कयास,
शिखर छूने की चाह बस अनायास.
ना संवेदन ना समर्पण,
बस अविराम अनर्गल शब्द वमन.
अतिशयोक्ति में मिथ्या आरोपण,
फिर खंडन और महिमामंडन.
इन स्वघोषित विद्वानों का
क्यों कर हो अभिनंदन..

अक्षिणी भटनागर

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