शनिवार, 17 अक्तूबर 2020

खुली किताब..

खुली किताब हुआ चाहते थे जनाब,
कुछ पढ़ गए कुछ लिख गए अज़ाब..

खुली किताब हुआ चाहते थे हुजूर,
कुछ पढ़ गए कुछ लिख गए फ़ितूर ..

नग़मानिगार हुआ चाहते थे पुरसुरूर,
कुछ कह गए कुछ सुन गए जीहुजूर..

यूँ लाजवाब हुआ चाहते थे बेहिसाब,
कुछ भर गए कुछ कर गए यूँ हिसाब..

यूँ आसमान हुआ चाहते थे पुरशबाब, 
कुछ डर गए, कुछ घर गए आली जनाब..



~अक्षिणी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें