हवाएं नाराज़ है इन दिनों निजाम से,
हालात-ए-मुल्क ओ माहौल-ए-आम से..
कुछ रूठे से हैं अपने ही अपनी सरकार से,
कब तक चलेगा काम राम जी के नाम से...
सरकार को न रहा सरोकार अब अवाम से,
रह गई है जनता की सरकार बस नाम से..
चुभोते जा रहे हैं नश्तर फिज़ा-ए-तमाम से,
कि बिक रहा है बस ज़हर मरहम के नाम से..
नहीं चाहिए कोई मुकाम मुझे इस दाम से,
ये राम नहीं मिलता मेरे राम जी के नाम से..
~ अक्षिणी
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