गुरुवार, 29 अक्टूबर 2020

हद-ए-मामूल..

यूँ हमसे न पूछ ज़िंदगी का तफसरा,
हद-ए-मामूल थी,जाने कब गुज़र गई..


~अक्षिणी 

मुल्ज़िम..

मैं अपने नाम का मुल्ज़िम हूँ जमाने के लिए,
यूँ तेरे नाम से मशहूर हूँ आजमाने के लिए..

~अक्षिणी

बुधवार, 28 अक्टूबर 2020

नारी तुम बैठो पाट..

नारी तुम केवल श्रद्धा हो
बन जाओ देवी,बैठो पाट
कुंकुम भाल चढ़ें,लक्ष्मी बन करो राज
अगर चंदन से महको केवल आज
कल फिर वही ठोकरों के काज
हाँ,धीमी रखना ज़रा अपनी आवाज़
देवी हो,नाज़ुक रखो अंदाज़
उठाओ नहीं अधिकार की बात
पूजित हो,प्रतिष्ठित रहो
सम्मान से वंचित रहो
श्रद्धा हो,शक्ति न बनो..

~अक्षिणी 

सप्तपदी..

बिंदु पथ हैं अपने वर्तुल सारे,
चलते निस दिन बिना किनारे..
आदि से अंत हो अंत से आदि,
फेरे सप्तपदी के सभी कुँवारे..

~अक्षिणी 

सोमवार, 26 अक्टूबर 2020

क्या कहिए..

रुपहली सी चमक
चाँदी से तारों की क्या कहिए..
चिंगारी सी थिरक
ठहरे अंगारों की क्या कहिए..
माथे की सलवटों में
उम्रों का तक़ाज़ा क्या कहिए..
संजीदा उन चश्मों से
नज़रों का नज़ारा क्या कहिए..

#यूँ_ही
~ अक्षिणी..😂

यादें..

यादें.. 
जो साँस लिया करती हैं..
जो साथ जिया करती हैं..

यादें..
जो साथ दिया करती हैं..
जो थाम लिया करती हैं..

यादें..
जो याद दिया करती हैं..
जो याद किया करती हैं..

यादें..
तो कर्ज़ हुआ करती हैं..
इक फ़र्ज़ हुआ करती हैं..

यादें..
कुछ सर्द हुआ करती हैं..
बस दर्द दिया करती हैं..

~अक्षिणी 

रविवार, 25 अक्टूबर 2020

तितली सा मन..

खिला हुआ जो
मिला नहीं कोई.
बाँट आया
मुस्कु


○°
राहटें,
मेरा तितली सा मन..
 
~अक्षिणी ..

तुम जो हो..

संकट नहीं बनाता तुम को,
तुम जो हो..
संकट सच दिखलाता जग को,
तुम जो हो..

~अक्षिणी 

आकाश नया..

अँधियारों को चीर के आए हैं,
पाए हैं आकाश नया,आकाश नया..
भारत की मिट्टी को छू पाए हैं,
पाए हैं आकाश नया,आकाश नया..

दुखड़ों का विस्तार बहुत था,
संकट की चीत्कार बहुत..
विधर्मियों का ताप बहुत था
पापी का अत्याचार बहुत..

मुश्किलों को जीत के आए हैं,
पाए हैं आकाश नया,आकाश नया..

भारत के अब वासी हम हैं
अब अपनी है पहचान नई..
कहलाते हिंदुस्तानी हम हैं,
अब अपनी है ये शान नई..

जंजीरों को कील के आए हैं,
पाए हैं अधिकार नया,आकाश नया...

~अक्षिणी 

पाकिस्तान से आने वाले शरणार्थियों के लिए जिन्होंने अभी अभी भारत की नागरिकता प्राप्त की है..

शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2020

बड़े दिल वाली..

फिर सूना होगा कोई कोना,
फिर होगा मुझको कुछ खोना..
कह रहे हैं लोग फिर मुझसे
तुम तो बड़े दिल वाली हो ना..


~अक्षिणी ..

गुरुवार, 22 अक्टूबर 2020

राम जी के नाम से..

हवाएं नाराज़ है इन दिनों निजाम से,
हालात-ए-मुल्क ओ माहौल-ए-आम से..

कुछ रूठे से हैं अपने ही अपनी सरकार से,
कब तक चलेगा काम राम जी के नाम से...

सरकार को न रहा सरोकार अब अवाम से,
रह गई है जनता की सरकार बस नाम से..

चुभोते जा रहे हैं नश्तर फिज़ा-ए-तमाम से,
कि बिक रहा है बस ज़हर मरहम के नाम से..

नहीं चाहिए कोई मुकाम मुझे इस दाम से,
ये राम नहीं मिलता मेरे राम जी के नाम से..

~ अक्षिणी 

शनिवार, 17 अक्टूबर 2020

खुली किताब..

खुली किताब हुआ चाहते थे जनाब,
कुछ पढ़ गए कुछ लिख गए अज़ाब..

खुली किताब हुआ चाहते थे हुजूर,
कुछ पढ़ गए कुछ लिख गए फ़ितूर ..

नग़मानिगार हुआ चाहते थे पुरसुरूर,
कुछ कह गए कुछ सुन गए जीहुजूर..

यूँ लाजवाब हुआ चाहते थे बेहिसाब,
कुछ भर गए कुछ कर गए यूँ हिसाब..

यूँ आसमान हुआ चाहते थे पुरशबाब, 
कुछ डर गए, कुछ घर गए आली जनाब..



~अक्षिणी