शाख-शाख पत्ते-पत्ते, छाता जाए अंधियारा मुँहजोर,
काले कैसे घोर अंधेरे, दिखता न किसी रोशनी का छोर
एक एक कर हारे मानव, बिलखे देखो आस के मोर
बढ़ता कैसा ये नवदानव, तोड़े जग की जीवन डोर
लील गया ये सूरज कितने, लूटे इसने तारे कितने
छीन रहा ये उम्रें कितनी, फूटे भाग के मारे कितने
छूटता धीरज कौन सहेजे, ढाढ़स कोई अब बाँधे कैसे
डूबता सूरज कौन उकेरे, साहस कोई अब साधे कैसे
हे ईश्वर कैसा अंधियारा, पार मनुज अब पाए कैसे
तेरा केवल एक सहारा, तुझ बिन नाव बचाए कैसे
अक्षिणी
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