दास्तान-ए-दलिया
माँ ने दलिया बनाया
गरम था तो महका
सब ने चख के देखा
मगर.. उठा नहीं
फ्रिज़ में धर दिया
शाम को निकाला
घी का तड़का लगाया
सब को समझ तो आया
मगर.. उठा नहीं
फ्रिज़ में धर दिया
सुबह फिर निकाला
दूध में भिगोया
चीनी में पगाया
मगर.. उठा नहीं
माँ कहाँ मानती है?
बादाम से सजाया
केसर में सगाया
चाँदी का वर्क लगाया
मगर..उठा नहीं
फिर धूप में फैलाया
नींबू भी निचोड़ा
छुहारे सा सुखाया
फ्रिज़ में धर दिया
कभी तो उठेगा..
वही जो अभी तक
मगर..उठा नहीं..
अस्वीकरण : दलिया को दलिया ही समझें। सजीव निर्जीव से तुलना न करें।
अक्षिणी
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