सोमवार, 28 फ़रवरी 2022

दुखःद..

9:30 am

ट्रिंग..
-हेलो..
-मेम आपका काल था..सॉरी मैं अभी उठा हूँ..
-जी..आज मनीत का प्रेक्टिकल था..आया नहीं वो..?
-आज था क्या..!!! ये आप वाइफ से बात कीजिए..
-साढ़े आठ बजे से चल रहा है सर..
-सॉरी मेम, उसने बताया ही नहीं..अभी उठा कर भेज दूँ?
-अब तो आधा खत्म हो गया,
मेडिकल भेजिए!

9:25 am

ट्रिंग..
-हेलो
-हाँ जी सर..राहुल कैसा है सर? एक्ज़ाम था आज..
अब तक लॉग इन नहीं किया उसने..
-अरे..आज एक्जाम था क्या..?
सुनो उठो तो..
-जी..
-अरे मेम..ये आप स्कूल वाले भी इतनी जल्दी एक्जाम रख देते हो,बच्चा उठा ही नहीं अब तक..
-साढ़े नौ बजे..जल्दी?

9वीं कक्षा

अगर ढूँढा जाए तो ऐसे अनेक उदाहरण आपको अपने आस-पास के शिक्षकों से सुनने को मिल जाएंगे..
कोरोना काल में आनलाइन क्लासरूम जब घर पहुँचा तो  शिक्षा और शिक्षण की गंभीरता मानो तिरोहित हो गई तिस पर शिक्षा बोर्डों और सरकारों के लोकलुभावन क्रियाकलापों ने करेला नीम चढ़ा कर दिया।

यूक्रेन में भारत सरकार द्वारा सुरक्षित निकास उपलब्ध कराए जाने पर भावी चिकित्सकों की छिछली प्रतिक्रिया देख कर मन विचलित हुआ..
क्या आपको नहीं लगता है कि हम सबने चीजों को सहज लेने के फेर में उनकी गंभीरता ही कम कर दी है..?

सब चलता है..!

जब तक हाथ में मोबाइल है, कान में ईयरप्लग, तन पर कपड़े, पेट भरा और सोने के लिए बिस्तर..सब चलता है..
इनमें से किसी में भी थोड़ी सी कमी हो जाए तो पहले माता-पिता को कोसेंगे, फिर सरकार को कोसने सड़क पर उतर आएंगे,एहसास होगा कि बच्चा कोई भावना भी रखता है अन्यथा मशीनी जड़मानव..

ऐसा लगने लगा है कि हमारे देश के बच्चे केवल प्रत्युत्तर में विश्वास रखने लगे हैं..किसी ने कुछ कहा उसका "काउंटर" आवश्यक है..वो भी मजाहिया..
परिहास होना चाहिए..अर्थ और मान का कोई महत्व कहीं  नहीं..कहीं बात नीची न  रह जाए..बिना सोचे-समझे केवल अगले को निरुत्तर करना ही लक्ष्य है..

अपना आराम और सुविधा ही अहम है,बिस्तर पर लेट कर पढ़ने के अभ्यस्त जो हो गए हैं।
माता-पिता ने कम्प्यूटर, लेपटॉप,फोन,इंटरनेट दिला कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली है।बच्चा कमरे मैं बंद है..भोजन,पानी,नाश्ता पहुँच जाता है और बालगोपाल भीतर लॉगइन से उपस्थिति दर्ज कर इंद्रजाल में गुम..।
बोर्ड भी क्या करे..?
उसे भी अपनी दुकान चलानी है..!
शिक्षा विभाग की अपनी मजबूरियाँ हैं..!
निजी स्कूलों की अपनी सीमाएं..
और शिक्षकों का तो रब ही राखा..!

जिनकी सबसे अधिक हानि है वे अभिभावक वाट्सएप ग्रुप बना कर शॉर्टकट ढूँढने में लगे हैं।जीवन में हर जगह असफल रहे लोग अभिभावक संघों के अध्यक्ष बन बैठे हैं और बच्चों के बहाने अपनी राजनीति चमकाने में लगे हैं।
क्या सरकार,क्या स्कूल,क्या बोर्ड,शिक्षक सब पर दबाव बनाने में लगे हैं..

इधर समाचारपत्रों की तो पहचान ही है जलती में हाथ सेंकने की..
आखिर पत्रकारों के लिए स्कूल एडमिशन का कोटा जो नहीं है..!

फीस माँग रहे हैं?
फेल कर दिया!
खाली कापी पे 4 नंबर ही दिए?
रुक अभी खबर लेता हूँ 
तेरे स्कूल की..!
रिपोर्टर का फोन नं देना
अभी लगाता हूँ
तेरी टीचर की वाट..!

क्या सिखा रहे हैं आप बच्चे को?
नुकसान किसका?
विचार कीजिए..
स्कूल में बच्चा दस बारह साल रहेगा,आप के लिए तो जीवन भर..

🙏

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