बात आधी हो के
अधूरी हो कोई..
धीर की आस सी
पूरी हो तुम..
स्वर्ग से उतरी हो के
चंद्र की कनी ही कोई
शाख पे खिलती हो के
मिट्टी से बनी हो कोई
साँच की ढाली हो के
आँच में ढली हो कहीं..
आग से जन्मी हो के
आब से जली हो तुम..
मिली जो नहीं मुझ से कभी
अजन्मी वो बेटी हो कोई?
बलिदानों का प्रारब्ध
के बलिवेदी हो कोई,
शक्ति हो,सामर्थ्य हो के
श्रद्धा और सबूरी हो तुम..
माँ की आँखों की एक
आस अधूरी हो कोई..
ओस की बूँद सी
बर्फ सी धुली हो तुम..
मौन की धूँध में
नाद सी घुली हो तुम..
युगों-युगों से कर रही
धरा को धन्य जो
जन्मों-जन्मो़ं से
त्याग की देवी हो तुम..
सभ्यता का आधार
संस्कृति की धुरी हो तुम..
गर्व हो तुम, मान भी
अर्घ्य की अंजुरी हो तुम..
~अक्षिणी
बहुत खूबसूरत और सशक्त अभिव्यक्ति 👏👏👏👌👍
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