सोमवार, 21 मार्च 2022

फिर आज कविता..

पन्नों की चुनर,
कहने का हुनर,
मनोभावों के उलझी तारों पर,
शब्दों की नावें सजी-धजी सी,
कठपुतली सी नाच उठी है
फिर..
आज कविता जाग उठी है..

महकी सी छुअन,
हल्की सी चुभन,
जाग उठे हैं सोये संवेदन,
झंकृत ज्यों अनगिन स्पंदन,
मनमचली सी नाच उठी है
फिर..
आज कविता जाग उठी है..

बातों की खनक,
रातों की धनक,

किससे जाने क्या कह जाए,
ठहरे-सहमे महके या बह जाए,
इक डफली सी बाज उठी है..
फिर..
आज कविता जाग उठी है..

आँखों में चमक,
पाँवों में घमक,
सपने लेकर लाखों के अमर,
तपने को जाने कितने हैं समर,
घन बिजली सी गाज उठी है..
फिर..
आज कविता जाग उठी है..

#कवितादिवस

~अक्षिणी

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