सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

कविताएँ हम तक चल कर आएँ..

कभी किसी ने कहा था,
"कविताएँ मुझ तक चल कर आती हैं।"

मन रंजित कर 
भंजित कर तंद्राएँ
मुझको व्योम नये ले जाएँ..
आभासों-अनुभावों के
अभिप्राय नये दिखलाएँ..
कविताएँ हम तक चल कर आएँ..
मन स्मृत-विस्मृत कर
तन झंकृत अनहद कर
अनुप्रास नये सिखलाएँ..
कविताएँ हम तक चल कर आएँ..

अक्षिणी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें