कभी किसी ने कहा था,
"कविताएँ मुझ तक चल कर आती हैं।"
मन रंजित कर
भंजित कर तंद्राएँ
मुझको व्योम नये ले जाएँ..
आभासों-अनुभावों के
अभिप्राय नये दिखलाएँ..
कविताएँ हम तक चल कर आएँ..
मन स्मृत-विस्मृत कर
तन झंकृत अनहद कर
अनुप्रास नये सिखलाएँ..
कविताएँ हम तक चल कर आएँ..
अक्षिणी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें