कहो ईश्वर!
कैसे साध लेते हो असाध्य ये जीवन-मृत्यु का अनुक्रम?
कैसे थाह पाते हो प्रकृति के मौन स्वरों का व्यतिक्रम?
कैसे भेद पाते हो ज्वालामुखी से विकराल कहकहों का क्रम
कहो कैसे बाँध पाते हो कलकल का कलरव..
हैं चकित देखते सदैव,
उत्तंग पर्वतों के तुंगश्रृंग..
कहो अनंत!
कहो वसुंधरे!
कैसे धार लेती हो
हिमनग सा ये धीर अगाध?
कैसे गाध लेती हो
हिमनद सी ये पीर अथाह?
कैसे बाँध पाती हो
जननी तुम ये स्नेह अपार?
कहो कैसे सह पाती हो
निज छाती पर बारंबार प्रहार?
किस विध गह पाती हो
निज थाती पर घात-आघात?
कहो कैसे पी जाती हो सब गरल प्रवाह?
कहो शस्यश्यामले!
~अक्षिणी
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