सोमवार, 26 जुलाई 2021

छाँव की प्रीत..

छाँव की झूठी प्रीत है प्यारे,
धूप में छूटे सब मीत सखा रे

उगता सूरज, पूजता जग है,
ढलते दिन का कौन सगा रे..

है घोर अँधेरी रात अकेली,
चहकते गुजरे दिन के उजारे..

बोझिल मन की कौन सुने है,
अपने मन तू पुलक जगा रे..

मेह के दिन सब दादुर बोले,
सूखे बदरा निज नाम पुकारे..

छाँव की झूठी प्रीत है प्यारे,
धूप में छूटे सब मीत सखा रे..


~अक्षिणी


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