माथे की
उजली रेखाएँ
हलकी गहरी
वो सलवटें
साक्षी सब हैं
बीती घड़ियों के
दुख के, सुख के
रिश्तों के रूख के
नज़र आते हैं अचानक
मगर उभरते शनै शनै
माँ की मायूसी के घेरे
पिता की खामोशी के फेरे
उग आती हैं माथे पर
रजत रश्मियाँ
उम्र के निशान
बोझिल कश्तियाँ
आशीषों के स्वर्णघट की
वो बरसातें
स्मृतियों के बिछड़े ठौर
हम जीते जाते..
~अक्षिणी
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