क्षितिज कहाँ,देखा किसने
कौन वहाँ तक चलना है..
मरीचिका एक क्षितिज सी,
धरती अम्बर का मिलना है..
सूरज का ढलना भी केवल
मिथ्या मन की छलना है..
ओझल हो इन आँखों से,
और किसी ठोर निकलना है..
मत रोको रजनी को,
उसको भी अपनी कलना है.
नियति चक्र न थमता थामे,
व्यर्थ मनुज के काँधे छिलना है..
~अक्षिणी