चुनावी साल है,देश की सरकार बदलने वाली है, हवाई चाल है,वक्त की दरकार बदलने वाली है..
नये सवाल , नये समीकरण होंगे,
नये आधार , नये अधिकरण होंगे..
चाल जो बदली है तो मोहरे बदले जाएंगे,
आइने बदले हैं तो चेहरे भी बदले जाएंगे..
फिर वादों की नई फसल उगाई जाएगी,
और दावों की नई गज़ल सुनाई जाएगी..
कुछ फूल पिरोए जाएंगे,
कुछ कांटे बोए जाएंगे..
फिर पढ़े जाएंगे मतदाता के कसीदे,
फिर जगाई जाएंगी जनता की उम्मीदें..
आस के कुछ गांव बसाए जाएंगे,
घात के नये दांव लगाए जाएंगे..
नये वादे और इरादे होंगे,
कुछ पूरे कुछ आधे होंगे..
घिसने नये चंदन होंगे,नये सागर नये मंथन होंगे
मलाई नये मख्खन होंगे,बस मठ्ठे बहाए जाएंगे.
मंत्री तो बदलेंगे पर नये संतरी कहां से आएंगे,
तंत्री तो बदलेंगे किंतु नये जंत्री कहां से लाएंगे..
बदलाव, कि चेहरे बदले जाएंगे,
अलगाव के पहरे बदले जाएंगे..
-अक्षिणी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें