गुरुवार, 13 जुलाई 2017

जीने दो..

इंसानों में मज़हबों को खोजने वालों,
मज़हबों की आदमियत पे नज़र डालो.
जुबानों में नफरतों को घोलने वालों,
इंसानों में मुहब्बत की बोलियां डालो.

जीने दो आदमी को कमबख्तों ,
अपनी ये लहू की दुकान हटालो..
न बांटो हमें रंग और राग  में ,
आदमी की जात का सदका उतारो..

आदमी के ख़ौफ से डरो जालिमों,
मजहब का हौवा बनाने वालो..
वक्त-ओ-हालात बदलने को हैं,
ख़ून का सौदा समेटने वालों..

आदमी किसी कैद में रहता नहीं,
उसे फिज़ूल की बंदिशों में न बांधो..
आदमी किसी जुल्म से डरता नहीं,
उसकी हैसियत को कम न जानो..

अक्षिणी

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