सोमवार, 24 जुलाई 2017

चेहरा...


जिद है कि फिर वही चेहरा दिखाई दे,
कमबख़्त वक्त फिर कहीं ठहरा दिखाई दे..

हैरां हैं इन दिनों आईना देख के मुझे..
मेरे चेहरे में अब तेरा चेहरा दिखाई दे..

ओढ़ लेते हैं मुस्कानें सरे आईना हम,
डर है अपना न कहीं चेहरा दिखाई दे..

अरसे से मुखौटों का इश्तहार है आदमी,
असली ना कोई चेहरा दिखाई दे..

वो सुनता है सबकी,करता है अपनी,
उसका न कभी चेहरा दिखाई दे..

अक्षिणी

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