मंगलवार, 15 जुलाई 2025

जी रहे..

बस इक नज़र की चाह में नज़र-नज़र को जी रहे,
वो सहर मिली नहीं तो क्या, सहर-सहर को जी रहे..

यूँ हर इक लहर में बह रहे, लहर-लहर में जी रहे..
हाँ, हर इक पहर के हादसे, पहर-पहर से कह रहे..

न थम रहे, न बह रहे, फकत ठहर-ठहर के जम रहे..
वो आँसूओं के कारवां, मेरी आँख से बस बह रहे..

 मुझे साथ ले के चल जरा, तेरे हाथ में मेरा हाथ हो..
मेरी मंज़िलों पे नज़र नहीं, हाँ क़दम-क़दम को जी रहे..

तेरी बज़्म में मेरा काम क्या,तेरी महफिलों से हैं उठ चले,
हर नज़्म तेरी नज़्म सी, यूँ ग़ज़ल-ग़ज़ल को है जी रहे..

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