शनिवार, 31 जुलाई 2021

बरसन लागी..

छलकन लागी नेह गगरिया
बरसन लागी मेह गठरिया..
तकत तकत अब नैन थकत हैं
गरजन लागी देह बिजुरिया..

घुमड़ रहे घन घनन घनन घन
बूँदों की छम छनन छनन छन
बहके पवन संग सनन सनन सन 
बावरा मन झन झनन झनन झन

थिरकन लागी मोह मुरलिया
निरखन लागी पी की डगरिया
परस-परस जल दाह लगत है
पी के दरस को तरसे गुजरिया..

~अक्षिणी



बुधवार, 28 जुलाई 2021

जल ही तो जीवन है..

बारिशें नहीं.. जीवन है..
बूँद बूँद ये..अमृत है..
अँजूरी तुम भर के देखो..
या जिह्वा पर रख के देखो..
गागर गागर भर लो इससे
सागर सागर कर लो इससे
इसको व्यर्थ न बहने देना
न माटी में मिलने देना..
छत-चौबारे जलकोष बनाएं..
जल भर कर जीवनतोष बनाएं..
जल है तो जीवन है..
जल ही तो जीवन है..

~अक्षिणी

मंगलवार, 27 जुलाई 2021

उम्र..

माथे की 
उजली रेखाएँ
हलकी गहरी
वो सलवटें
साक्षी सब हैं
बीती घड़ियों के
दुख के, सुख के
रिश्तों के रूख के
नज़र आते हैं अचानक
मगर उभरते शनै शनै
माँ की मायूसी के घेरे
पिता की खामोशी के फेरे
उग आती हैं माथे पर
रजत रश्मियाँ
उम्र के निशान
बोझिल कश्तियाँ
आशीषों के स्वर्णघट की
वो बरसातें
स्मृतियों के बिछड़े ठौर
हम जीते जाते..

~अक्षिणी

सोमवार, 26 जुलाई 2021

बीता हुआ एक और साल..

दिखने लगे हैं इन दिनों,
चेहरे पे बीते वो साल..
सलवटों में हो रहा बयां,
बदलते मौसमों का हाल..
कहने को हुजूर..
हैं आज भी कमाल,
कर रहे हैं चुगली मगर..
बालों में चाँदी के चंद तार,
मुबारक हो जनाब,
ये ठहरी हुई बहार..
बीता हुआ एक और साल..

~अक्षिणी

छाँव की प्रीत..

छाँव की झूठी प्रीत है प्यारे,
धूप में छूटे सब मीत सखा रे

उगता सूरज, पूजता जग है,
ढलते दिन का कौन सगा रे..

है घोर अँधेरी रात अकेली,
चहकते गुजरे दिन के उजारे..

बोझिल मन की कौन सुने है,
अपने मन तू पुलक जगा रे..

मेह के दिन सब दादुर बोले,
सूखे बदरा निज नाम पुकारे..

छाँव की झूठी प्रीत है प्यारे,
धूप में छूटे सब मीत सखा रे..


~अक्षिणी