हे शब्दों के छद्म लड़ाकों,
यूँ बातों में युद्ध हराओ ना..
मैं प्रहरी हूँ इस सीमा का,
तुम जोश में होश गँवाओ ना..
कुछ विश्वास मुझ पे भी जताओ ना..
जागृत हूँ मैं, उद्यत भी
तुम व्यर्थ के दोष लगाओ ना..
सक्षम हूँ मैं, सज्जित भी,
तुम बातों के बाण चलाओ ना..
कुछ विश्वास मुझ पे भी जताओ ना..
जागृत हूँ मैं, उद्यत भी
तुम व्यर्थ के दोष लगाओ ना..
सक्षम हूँ मैं, सज्जित भी,
तुम बातों के बाण चलाओ ना..
कुछ विश्वास मुझ पे भी जताओ ना..
अक्षिणी
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