मंगलवार, 21 मई 2019

कीमत..

आज नहीं तो कल मानेंगें
मगर तब तक हम
सच को झुठलाएंगे
 जब तक ना हम
लतियाए जाऐंगे
धकियाए जाऐंगें
हम उनको गले लगाऐंगे
सच को नकारेंगे
स्वयं को छलते जाऐंगे
जब तक ना मारे जाऐंगे
उदारता की झोंक में 
मुँह की खाएंगे
अपने ही घर से खदेड़े जाऐंगे
निरपेक्ष रहेंगे
और नपुंसक बन जाएंगे.

 अक्षिणी

तेरी खातिर..

क्षमा कर देना हमें..
 नहीं छोड़ पाएंगे
सारी दुनिया तेरी खातिर.
नहीँ भूल पाऐंगे
ये गलियां तेरी खातिर.
 नहीं भूल पाएंगे
 दुनिया के गम तेरी खातिर.
माँ के हाथ की रोटी
तेरी खातिर.
 और वो बापू की झिड़की
तेरी खातिर.
 वो बहना के बोल.
 टूटी दुछत्ती की खिड़की
तेरी खातिर.
माफ कर देना हमें.
जुटाने है
चंद टुकड़े अभी..
 बनानी है चार दीवारें अभी..
छोटे की किताबें बाकी हैं..
छोटी की जुराबें भी फटी हैं..
फिर कुछ माँ के भी सपने हैं..
जो मेरे भी अपने हैं..
 इसलिए मेरी दोस्त ..
 माफ कर देना मुझे..
भूल जाना मुझे..

व्यर्थ है भागना ..
परछाइयों की ओर..
 नियमों को तोड़ अकेले
किसी कोने में छुप
 ख़ुद के लिए
चुपचाप हाशियों पे
जीने की खातिर
इसलिए
लौट चलते हैं
अपनी अपनी दुनिया में..
और जीते हैं सब की खातिर..

अक्षिणी

सार्थक

नव का हो निर्माण सार्थक
निजहितचिंतन हो गौण जहाँ
मुखरित हो सर्वजन हित
सर्वजन सुख जहाँ सर्वदा

नव का हो निर्माण..
निस्वार्थ रहे जब सोच सदा
सत्यनिष्ठ हो एकनिष्ठ हो
सत्पथ हो संधान जहाँ

नव का हो निर्माण..
निरपेक्ष हो निष्पक्ष सदा साथ
चलें साथ बढ़ें
राष्ट्रहित रहे जो लक्ष्य सदा..

अक्षिणी

गुरुवार, 9 मई 2019

दो कौड़ी

दो कौड़़ी की औकात है यारों,
वही गिनते हैंं वही गुनते हैं..
मोतियों के ढेर से हर बार,
वही ईमान की दो कोड़ियाँ चुनते हैं..

अक्षिणी

सोमवार, 6 मई 2019

लौट आओ..

स्त्री
 तुम स्त्री हो कर भी
 पुरुष से कहीं ज्यादा हो..
 हाँ मगर स्त्री तुम
स्त्री रही कहाँ हो..?
 पुरुष बनने की चाह में
 खो रही हो अपना स्त्रीत्व..
 माँ तो आज भी हो मगर
खो चुकी हो मातृत्व का ममत्व..
विवेकशून्य हो
 किए जा रही हो अनुकरण
भूल कर अपना नैसर्गिक महत्व..
 लौट आओ क्योंकि
व्यर्थ है ये दिशाहीन विचरण..
कब तक खोजती रहोगी
समानता के फेर में
 स्वच्छंदता का अवतरण..
 श्रेष्ठ हो
सो छोड़ दो पुरुष बनने का
ये आत्मघाती यत्न



अक्षिणी..