मैं तृषित और तुम कृपण युगों-युगों से,
कैसे देख पाओगे नेह दृगों के..
तुम रहने दो..
तुमसे मोहब्बत ना हो पाएगी..
साक्षी संदर्भ हैं प्रीत क्षणों के,
कैसे गाओगे वो गुंजित गीत मनों के
तुम रहने दो..
तुमसे मोहब्बत ना हो पाएगी
जो मुग्ध हो गुम तुम स्वयं पर यों,
कैसे देख पाओगे छू कर मन को?
तुम रहने दो...
तुमसे मोहब्बत न हो पाएगी...
क्यों कर समझोगे दर्द दियों के,
हो बंधक तुम अंश-हरों के
कैसे प्रीत निभा पाओगे?
तुम रहने दो..
तुमसे मोहब्बत ना हो पाएगी..
उलझे रहते हो अंकों शब्दों में
बेरहम चांदी के टुकड़ों में
कैसे समझोगे मन छंदों के
तुम रहने दो..
तुमसे मोहब्बत ना हो पाएगी ..
अक्षिणी
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