देख के धूप को छाँव के रंग मचल जाएंगे..
रोक लो शहर को गाँव के ढंग बदल जाएंंगे..
शाम खो जाएगी, बाग खो जाएंगे,
पंछियों के नीड़ उजड़ जाएंंगे..
बाड़ खा जाएगी, बाढ़ आ जाएगी,
ड्योढ़ियों के रुख उखड़ जाएंंगे..
रोक लो शहर को, गाँव के ढंग बदल जाएंगे..
चौके बँट जाएंगे, चूल्हे पट जाएंंगे,
दूध घी खीर में मठ्ठे पड़ जाएंगे..
मेले खो जाएंगे, रोले पड़ जाएंगे,
बात-बे-बात लठ्ठे लड़ जाएंंगे..
रोक लो शहर को गाँव के ढंग बदल जाएंंगे..
बेटे चुक जाएंगे, बेटियाँ लुट जाएंगी,
भाई-बंधी के नाज में घुन पड़ जाएंंगे..
साँस घुट जाएगी, आस मर जाएगी,
चाह की राह में काँटे उग आएंगे..
रोक लो शहर को गाँव के ढंग बदल जाएंंगे..
🙏
~अक्षिणी
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