गुरुवार, 20 अक्टूबर 2022

अल्हड़ नदिया सा जीवन..

किन यादों की गठरी खोलें,
किन नावों के रस्से..
अल्हड़ नदिया सा जीवन अपना,
घट-घट गहरा सागर..

किन छोरों पे बंधन बांधें,
किन भावों पर पहरें..
कलकल कलता जीवन अपना
छलछल छलकी गागर..

किन मोहों की उँगली थामें,
किन छोहों के सदमे..
पल-पल दहका जीवन अपना,
रह-रह जलता उपवन..

~अक्षिणी

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