जीतों के संग तो जी लें हम, मरतों के साथ मरें हम कैसे..
मीतों के नाम का खालीपन, कह दो के राम भरें हम कैसे..
गीतों में जिनको जीते आए, उन बोलों की राग सुनें हम कैसे..
रीतों के दीप ना जलने पाए, अब राखों की आग चुनें हम कैसे..
जिनको देख के जीते आए, उन आँखों पे द्वार जड़ें हम कैसे..
इसको उसको खो कर अब, जीवन का संग्राम लड़ें हम कैसे..
पक्के पत्तों का गिरना समझें, नन्हें पौधों का ताप हरें हम कैसे..
सबके आँगन क्यों बिजली गाजे, हर घर जा घाव भरें हम कैसे..
~अक्षिणी
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