मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

बिखरे लम्हे..

इज़हार पे पाबंदी,इकरार पे पहरे हैं,
अंदाज-ए-बयानी के राज़ ये गहरे हैं..

जुस्तजू-ए-क़फ़स हो के ज़ज्बे ज़िंदगी,
आग़ाज़ भी तन्हाई अंजाम भी तन्हाई ..

आगाज़ तो होता है या रब,अंजाम नहीं होता,
जब तलक मेरी कहानी में वो नाम नहीं होता..

क्यूँ चुप रहें और सहें खुदाया
अगरचे चुप रह के पछताएं ..
है गर नतीजा एक ही तो है बेहतर,
कि कर के कुछ अर्ज़ पछताएं..

वक्त के पन्नों पर सैंकड़ों किस्से हैं,
कौन जाने कौनसा आपके हिस्से है..

ये ट्विटर है मेरे यार..
शब्दों और शब्दों का संसार,
शब्दों के परे पढ़ना है बेकार..
न कुछ पंक्तियों के दरमियां,
ना पंक्तियों के आर पार..

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