पराजय हार नहीं होती
जब तक स्वीकार नहीं होती
पराजय हार नहीं होती
निराशा का यदि हार नहीं होती
लक्ष्यों की ललकार हुआ करती है
विश्वासों की पहचान हुआ करती है
आकांक्षाओं,अभिलाषाओं का
पुन:स्मरण हर बार हुआ करती है
पराजय का अस्तित्व जब तक
दृढ़ता से वो दो-चार नहीं होती
पराजय जीवित मात्र तब तक
क्षमताएँ सारी लाचार नहीं होती
पराजय कभी हार नहीं होती
जब तक मन को स्वीकार नहीं होती..
~अक्षिणी
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