रविवार, 29 दिसंबर 2024

पुण्य स्मरण..के.एम. मुंशी

आज 30 दिसम्बर है..विश्व हिंदू परिषद् और भारतीय विद्या भवन के संस्थापक और स्वतंत्रता सेनानी डॉ. कन्हैया लाल माणिक लाल मुंशी का जन्मदिवस..
पुण्य स्मरण।
स्वतंत्र भारत के तीसरे कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्री रहे मुंशी जी अपने साहित्यिक नाम घनश्याम व्यास से भी जाने जाते थे।वकालत की डिग्री प्राप्त करने के बाद आप बहुत समय तक समाज की सेवा और उत्थान के लिए प्रयासरत रहे। सन् 1952 में आप उत्तरप्रदेश के राज्यपाल बने।
आपने गुजराती, हिंदी और अंग्रेजी में भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर पर सृजन किया। आपके द्वारा रचित पाटनत्रयी (Patan Trilogy) गुजराती साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।इस त्रयी में पाटण नी प्रभुता, गुजरात नो नाथ और राजाधिराज नामक पुस्तकें सम्मिलित हैं।
इसके साथ ही आपने भारत के ऐतिहासिक वैभव को अपनी लेखनी से भी उकेरा।जय सोमनाथ, पृथ्वी वल्लभ, कृष्णावतार, लोपामुद्रा, तपस्विनी, भगवान परशुराम आदि अनेक पुस्तकें सम्मिलित हैं।
मुंशी जी संवेदनशील साहित्यकार एवं जागरूक पत्रकार थे। आपने गुजराती मासिक "भार्गव" का प्रकाशन आरंभ किया और यंग इंडिया के संयुक्त संपादक रहे।आप गुजराती साहित्य परिषद् और हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष रहे।
बड़ौदा कालेज में अपने आचार्य अरविंदो घोष से आप अत्यधिक प्रभावित हुए।
महाराजा सयाजीराव पाटिल,महात्मा गांधी और सरदार वल्लभभाई पटेल के विचारों ने आपके जीवन को प्रभावित किया।स्वतंत्रता से पहले आप भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे।बाद में आप स्वतंत्र पार्टी के सदस्य बने।
संविधान निर्माता समिति के सदस्य के रूप में संविधान के निर्माण में योगदान दिया।
आपको भारतीय संविधान के असली निर्माताओं में गिना जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
 सरदार पटेल के साथ आप ने देशी रियासतों के एकीकरण में भी सक्रिय भूमिका निभाई। 
1948 में भारतीय सेना के आपरेशन पोलो के बाद हैदराबाद का भारत में विलय हुआ और आप हैदराबाद में भारत के एजेंट नियुक्त किए गए।
राजनैतिक-साहित्यिक क्षेत्र के अतिरिक्त आपने हिंदू समाज के धार्मिक पुनरुत्थान में भी महत्वपूर्ण योगदान किया। अपने विचारों और भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार हेतु आपने 7 नवम्बर 1938 को मुंबई में हर्षद भाई दिवतिया और उनकी धर्मपत्नी लीलावती के साथ
 भारतीय विद्या भवन की स्थापना की।
भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों की पुनर्प्रतिष्ठा में आपकी भूमिका अविस्मरणीय रहेगी।आप सरदार पटेल के विश्वसनीय थे।सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार को लेकर नेहरू जी की अप्रसन्नता सर्वविदित है-
 “मुझे यह पसंद नहीं है कि आप सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण में लगे हैं।यह हिंदू पुनरुत्थानवाद है।”
आपका उत्तर था-
सरदार पटेल और मुंशी जी के प्रयासों के परिणामस्वरूप स्वरूप ही सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार संभव हो पाया जिसका उद्घाटन डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने किया।

भारतीय स्वतंत्रता और संस्कृति के इस महान मनीषी को शत् शत् नमन।🙏

~अक्षिणी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें