जब अंतस में हूक उठे तो
छंद बनें,
मन की कोयल कूक उठे तो
बंद बनें..
जब मानस में आग लगे हर
बोल जरे,
जब ढाढ़स की लाम लगे सब
तोल खरे..
आँखों में रक्त उतर आए तो
गीत बनें,
साँसों का राग उलझ जाए तो
संगीत बनें..
गीत बने जनगीत तभी,
जब लहू पुकारे गाते जाएँ..
अस्थियों का वज्र बने फिर
निज मज्जा का दीप जलाएँ..
~अक्षिणी
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