वो अलगनी पे टंगी-टंगी सी रातें
भूली सी, ताख पे रखी हुई बातें..
अपनी हैं..पराई भी..
ठहरी हुई इक हिमनदी सी
वो आधी सी,अधूरी सी मुलाकातें..
कच्ची है, सगाई भी..
मेरी साँसों में शामिल तेरी आहटों की खुशबू,
न मिलकर भी मिलने की सी ज़ुस्तज़ू..
अपनी है, तन्हाई भी..
#बातें
*सगाई-पकी हुई
~अक्षिणी
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