रविवार, 1 अगस्त 2021

ज़िंदगी..

वो अपनी गली में आना तेरा
और इठला के वो इतराना तेरा
याद मुझे अब आता है
हौले से वो शरमाना तेरा

भूले से कहीं मिल जाना तेरा
नुक्कड़ पे वो टकराना तेरा
याद मुझे अब आता है..
वो धानी चुनर लहराना तेरा

आज मुझे मिल जाना जरा
बातों से मुझे बहलाना जरा
फिर आज मुझे भरमाता है
यूँ शाम ढले घर जाना तेरा..

~अक्षिणी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें