गुरुवार, 13 मई 2021

बहलाया जाए..

सुना-सुना सा कुछ फिर इक बार सुनाया जाए..
फिर इक बार यूँ महफिल में रंग जमाया जाए..

हालात का मातम सरे आम न यूँ मनाया जाए..
फकत दिल ही तो है, किसी तौर लगाया जाए..

वक्त के जख़्मों को न यूँ बेवजह जगाया जाए..
हालात बदलें न बदलें,उम्मीद से बहलाया जाए..

इलजाम ये मोहबत का किसी पर न लगाया जाए..
मुमकिन नहीं कि हर इक शै को आजमाया जाए..

ज़िंदगी नज़्म ही सही, गज़ल इसे बनाया जाए..
रदीफ नहीं, न सही, काफ़िया तो मिलाया जाए..

~अक्षिणी


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें