सुना-सुना सा कुछ फिर इक बार सुनाया जाए..
फिर इक बार यूँ महफिल में रंग जमाया जाए..
हालात का मातम सरे आम न यूँ मनाया जाए..
फकत दिल ही तो है, किसी तौर लगाया जाए..
वक्त के जख़्मों को न यूँ बेवजह जगाया जाए..
हालात बदलें न बदलें,उम्मीद से बहलाया जाए..
इलजाम ये मोहबत का किसी पर न लगाया जाए..
मुमकिन नहीं कि हर इक शै को आजमाया जाए..
ज़िंदगी नज़्म ही सही, गज़ल इसे बनाया जाए..
रदीफ नहीं, न सही, काफ़िया तो मिलाया जाए..
~अक्षिणी
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