टूटता नहीं कभी..
हाँ मगर रिसता है,
दरार दर दरार..
दिखता नहीं कभी..
हाँ मगर टीसता है,
करार दर करार..
बिखरता नहीं कभी..
हाँ मगर सीलता है,
मन, दर-ओ-दीवार..
या के..
वो पानी क्या जो बँध जाए?
वो बाँध क्या जो टूट जाए?
सूख जाए तो ज़ख़्म क्या?
वो नेह क्या जो छूट जाए..
~अक्षिणी
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