कुछ नहीं कहना है!
कुछ नहीं करना है!
संज्ञाहीन,संज्ञाशून्य हैं हम..
घृणा भी नहीं उपजती नपुंसक नरपुंसकों पर
संवेदनाहीन,तथाकथित नरपुंगवों पर
मृत संवेदनों का समाज,
शिक्षा कोढ़ में खाज
मिथ्या का जोश, 24घंटों का शोर..
खोखली वीरता के सोशल-मीडिया वीर..
बोलबाल के चुप,बातों के शेर..
सभ्यता के चीथड़े,लाशों के ढेर..
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