यूँ कर्मन के बाँध के घुँघरू, थिरक रहा जग तेरी माया..
कान्हा कैसा मोह लगाया,राजा-रंक सब तेरी छाया..
मोहन मुरली की तान सुना कर, सारा जग तूने भरमाया..
कान्हा कैसा रस बरसाया, छलकी गगरी भीगी काया,
बंसी को यूँ अधर लगा कर, राग ये प्रेम का ऐसा गाया..
कान्हा कैसी धुन तू लाया, कँकर-पत्थर बाँध तू पाया..
गोकुल-बृज को मोहा तूने, सारे जग को दास बनाया..
मीरा नाची, राधा नाची, रुक्मणि को भी रंग लगाया..
छोड़ के जग के बँधन सारे,कृष्णा तू वीतरागी कहलाया..
~अक्षिणी
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