रविवार, 5 दिसंबर 2021

सत्ता की जात..

इनके कपड़ों पर तंज बनते हैं,
उनके बंगलों की बात होती है,
मुद्दे सारे वहीं कहीं रहते हैं
रंगे सियारों की बात होती है..

कभी राम को गाली देते हैं,
कभी नाम पे ताली देते हैं,
बाँध के धोती मंदिर-मंदिर
जनेऊधारी की बात होती है..

इनको धर्मों के ताने पड़ते हैं,
उनको मज़हब की लात पड़ती है..
मौका दिन ही बदल देता है,
हर रात सुहागरात होती है..

इनकी डिग्री पे उँगली उठती है,
उनकी बिक्री पे मात होती है..
लोग उम्मीद नहीं रखते अब,
एक सत्ता की जात होती है..

राजनीति के हाल चंगे हैं,
कुर्सी पे सब लाल नंगे हैं..
सीधी-उल्टी वो चाल चलते हैं,
जनता रोज हलाल होती है..

~अक्षिणी

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