जलियाँवाला पूछ रहा है लाल किले से रोकर हाल,
कितने नाशुक्रे निकले देखो अपने ही पेट के लाल..
डायर के फायर से भारी अपने अपनों की मार,
बिन गोली के हुआ है छलनी सीना अबकी बार..
लाल किले की लज्जा लूटी,प्राचीर पे किया वार,
गणतंत्र दिवस का अपमान किया,तिरंगा लिया उतार..
बारूद लगा कर भाग छूटे हैं नकली नक्सल यार,
आज नहीं तो कब गाजेगी आखिर कानूनी तलवार..
माटी के माथे पर मल गए ये कैसा भीषण काला दाग,
भारत की छाती पर दल गए देखो ये नफरत की दाल..
तलवार भांजते जो निकले उनको कह दूँ कैसे मैं जय किसान,
भूखे रहना मंजूर मुझे नहीं चाहिए ऐसे अन्नदाता किसान..
~अक्षिणी
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