ये कैसी आज़ादी है?
74साल बाद भी हम अपनी-अपनी अलग पहचान का झंडा लिए खड़े हो जाते हैं,अपने अधिकारों का परचम लिए हर तीसरे दिन देश को आँखें दिखाने लगते हैं.
हमें न अपने राष्ट्र की परवाह है,न राष्ट्रीय पर्व का लिहाज,ना ही अपने राष्ट्रीय प्रतीकों के लिए हमारे मन में कोई सम्मान..!
ये कैसी आज़ादी है?
इतने शर्मनाक कृत्य के बाद भी लोग अपनी तुच्छ राजनीति से बाज नहीं आते..
कृषि बिल विरोध के नाम पर अपनी राजनीति चमकाने के लिए किसानों को भड़काने का काम भी तो हमारे ही कुछ अपनों ने किया..!
ये कैसी आज़ादी है?
किसी भी नियम की अनुपालना हम स्वेच्छा से नहीं करते.
यातायात का नियम हो या कर कानून हम उनकी अवहेलना कर गर्व करते हैं.
स्वच्छ भारत के विरोध में हम पटरियों पर शौच करने बैठ जाते हैं.
क्यों हम अपने देश को अपना नहीं समझते और बाहर वालों की बातों में आ जाते हैं?
ये कैसी आज़ादी है?
सरकारी संपत्ति को हम अक्षरशः अपनी समझते हैं और गाहे-ब-गाहे उसे तोड़-फोड़ कर अपना क्रोध व्यक्त करते हैं..
रेल हो, बस हो, या सड़क सब का उपयोग और दुरुपयोग हम अपना अधिकार समझते हैं..
ये कैसी आज़ादी है?
किसान आंदोलन को ही लीजिए..
विरोध समझ आता है किंतु क्या ट्रैक्टर रैली आवश्यक थी?
क्या सिद्ध करना चाहते थे..?
कि आप अपनी चुनी हुई सरकार से ज्यादा ताकतवर हैं?
क्या आप अपने ही देश की सरकार को पूरे संसार के सामने शर्मसार करना चाहते थे?
ये कैसी आज़ादी है?
और विरोध प्रदर्शन के नाम पर लालकिले पर आपका शर्मनाक कृत्य किसानों के प्रति सहानुभूति को जन्म देगा?
आप तो समझदार होने का दावा करते थे?
यदि इस अराजकता से आपका कोई संबंध नहीं है तो आप साथ क्यों खड़े हैं?
ये कैसी आज़ादी है?
"जय जवान जय किसान" का क्या हुआ?
शर्म नहीं आई जब आप लोगों ने पुलिस कर्मियों पर हाथ उठाया?
वे पुलिस कर्मी जो राष्ट्र की सेवा में सन्नद्ध थे?
क्या हासिल हुआ?
राजनेताओं को तो अपनी रोटियाँ सेंकनी
हैं किंतु आप उन की बातों में कैसे आ गए..?
ये कैसी आज़ादी है?
पूछिए एक बार स्वयं से..आज़ादी का पचहत्तरवाँ साल द्वार पर खड़ा है..
क्या हम पात्र हैं इस आज़ादी के लिए?
क्या हम समझते हैं अपना उत्तरदायित्व?
क्यों हम भीड़ के साथ भीड़ बन खड़े हो जाते हैं और झंडे के डंडे से ही झंडे की प्रतिष्ठा मिट्टी में मिला देते हैं..?
ये कैसी आज़ादी है?
इस मुगालते में न रहे कि इस सब से आपके आंदोलन को कोई लाभ होगा.
दिल्ली पुलिस ने आपको अनुमति दी. आपने उनकी बात रखी?
यदि नहीं तो किस मुँह से सरकार को दोषी ठहरा रहे हैं?
प्रश्न तो उठेंगे,उठेंगी उंगलियाँ आप पर.
क्षमा करिए अन्नदाता जी,दलालों के हाथ खेल गए आप..!
~अक्षिणी