न ढूँढ अक्स किसी और के,
खुद आईना बन के जी..
यूँ नक़्श मंज़िलों के भूल के,
तू रास्ता बन के जी..
अक्षिणी
हम पूछते हैं
अजन्मे बच्चों का लिंग
और पूछते हैं
दूधमूँहे अबोध का धर्म,
जानना चाहते हैं
शवों की जात
और कहते हैं
स्वयं को मनुष्य
क्यों ..?
अक्षिणी
हाँ मुझे भी मुझ सा ही रहने दो
न तुम बदलो न हम
अपने मन की करने दो
मगर अर्थ क्या जो
विलग किनारों से बहते आएं
साथ हो कर भी सदा
अपने दायरों में जीते आएं
नेह का दरिया
हमें छू कर गुजर जाए
स्नेह का सोता कभी
समंदर न बनने पाए
पर हाँ
तुम तुम रहो मैं मैं
कभी हम न होने पाएं..
अक्षिणी